यह कहानी 70 के दशक की है जब मुरैना में जितने डकैत थे वह नेतागिरी की तरफ रुझान दिखा रहे थे, लेकिन जो बागी थे वह अब भी सरकार से छीनकर गरीबों का भला करने के आदी थे, उन्हें आज़ादी से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा था, वह तो सिस्टम के खिलाफ लड़ने के आदी हो चुके थे,उनकी जो जनता थी वह अभी भी गरीब थी, उसी समय मुरैना जिले के मुख्यालय से 38 किलोमीटर दूर एक जगह से रेलवे के इंजीनियर की पकड़ कर ली गयी ।
पकड़ करने वाला कौन था? किसी को नहीं पता था? सब अलग अलग कयास लगा रहे थे, पूरे जिले में पुलिस कप्तान ने फोर्स दौड़ा दी । ज्यादा दबाब देखकर पकड़ करने वाले बीहड़ों में जाकर छुप गए, लगभग 7 दिन बाद खबर मिली कि बीहड़ों में बने हुए एक पुराने कमरे में वह छुपे हुए हैं, और कुछ डकैतों के समूह ने उन्हें देखा है व उन्हीं डकैतों ने सरकार को इत्तिला कर दी,क्योंकि यह उन के क्षेत्र में किसी और के द्वारा की गई पकड़ थी । पुलिस भी इसीलिए नहीं खोज पाई क्योंकि पकड़ करने वाले उनके घरेलू डकैत नहीं थे, आखिर जनाकारी सही पाने के बाद उस कमरे के 200 मीटर दूर(निर्वाचन ने यहीं से दूरी निर्धारित की थी) एक पतला सा टेंट लगाया गया, पुलिस कप्तान से लेकर आरक्षक तक लगभग 150 लोग जमा थे, भोपाल से विशेष हिदायत थी कि इंजीनियर को कछु नहीं होना चाहिए भले डकैत छूट जाएं, एस पी साहब ने माइक मंगाकर समर्पण करने का एनाउंस कर दिया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई ।
तब तक दो पत्रकार भी पहुंच चके थे, गांव के अन्य लोग भी आ चुके थे कोई कह रहा था कि सुबह शौच करने दो लोग इस तरफ आए थे, तो कोई कह रहा था रात में छत पर तीन परछाई दिख रही थीं, कुल मिलाकर दरोगा साहब ने पुलिस कप्तान को खबर दी कि 3,4 लोग होने का अंदाज़ है,या ज्यादा भी हो सकते हैं और उनके पास बंदूक भी हैं।
सुबह के 9 बज चुके थे कलेक्टर साहब के आने की खबर पहुंच गई थी, थोड़ी देर में कलेक्टर साहब भी आ पहुंचे, उनके आते ही एक पत्रकार ने मध्यस्थता करने का निवेदन किया तो एस पी साहब ने फटकार कर भगा दिया, कहा “मर जाओगे तो जवाब हमसे माँगेने हमें किसी पत्रकार की जरूरत नहीं है”
और कलेक्टर साहब से कहा “सर आदेश करो तो अंदर घुस कर मारे देते हैं सबको,कोई डकैत आगे ऐसी हिम्मत नहीं करेगा”
कलेक्टर साहब बोले “नहीं इंजीनियर सकुशल चाहिए हमें, कोई और रास्ता खोजो, विधायकजी को भी बुलबा लो, हो सकता है वह जानते हों इन्हें”
थोड़ी देर में विधायकजी भी आ पहुंचे उन्होंने गांव बालों से बात की और पुलिस कप्तान को सुनाकर कहा “यदि हमारे लोगों की सुरक्षा नहीं कर सकते तो स्तीफा दे दो,मैं आज ही मुख्यमंत्री से बात करता हूँ” यह कहकर बापस हो लिए
आखिर वहाँ के तहसीलदार साहब ने कलेक्टर साहब से कहा “जिला मुख्यालय पर हाई स्कूल में कैलाश मासटाब पदस्थ हैं उन्हें बुलबा लो उनके सामने अच्छे अच्छे डकैत हथियार डाल देते हैं”
यह सुनकर एस पी साहब ने अपने कंधे पर लगे अशोक स्तम्भ को देख और बोले “सर यह मास्टरों की बस की बात नहीं है, यह सिर्फ बंदूक से मानेंगे”
कलेक्टर साहब एस पी साहब से बोले “यह आखिरी विकल्प है पहले हमें और तरीके आजमाने दो”
आखिर कलेक्टर साहब ने गांव के कुछ लोगों और प्रशासन के कुछ अधिकारियों से बात की और मासटाब को लेने अपनी जीप भेज दी,आखिर 10.30 बजे के आसपास विद्यालय में 4 अधिकारी पहुंचे और मासटाब से निवेदन किया।
मासटाब उस समय स्कूल में लगी गाँधीजी की तस्वीर से धूल झड़ा रहे थे, इनकी बात सुनकर वह मामला समझते हुए बोले ” ठीक है तुम पहुंचो मैं 11 बजे की रोडवेज बस से आजाऊँगा, उहोंने कहा “नहीं कलेक्टर साहब ने आपको अर्जेन्ट बुलाया है और अपनी खुद की गाड़ी भेजी है”
मसटाब बोले ठीक है, वह पैजामा औऱ बड़ी बनियान पहने हुए थे, कुर्ता निकालकर पास के कन्हैर पर लटका रखा था वह ऐसे ही उठकर कुर्ता हाथ मे लेकर बनियान पहने ही जा बैठे और लगभग एक घण्टे में जीप से उसी जगह पर पहुंच गए,
उनके पहुंचते ही कलेक्टर साहब ने प्रणाम किया और पूरी बात बताई, यह सुनते सुनते ही मासटाब ने अपनी बनियान के अंदर हाथ डाला उसकी बनी हुई चोर जेब से एक पुड़िया निकाली औऱ उसमें से एक अठन्नी निकालकर कलेक्टर साहब को दे दी औऱ कहा “यह लो पहले गाड़ी का किराया,बस से आते तो,चवन्नी में भी काम हो जाता ,अब इतनी बड़ी सरकारी गाड़ी से आये हैं तो लिहाज करना पड़ेगा”
कलेक्टर साहब उस अठन्नी को देखकर हिसाब लगाते रहे कि उन पर सरकार का कितना कर्ज चढ़ा है और मना करने लगे ,लेकिन उसी समय गांव के लोगों ने उनसे कहा साहब ले लो यह कर्ज नहीं रखते किसी का, मासटाब की खबर सुनकर विधायक जी भी बापस आ पहुंचे, मसटाब के पैर छुए और एक तरफ खड़े होगये ।
इतने में एसपी साहब उठ खड़े हुए मास्टर के पास आकर खड़े हो गए, कंधों पर अशोक स्तंभ देखा और इस बार उससे आगे अपने स्टार भी देखें और पूछा “मास्टर कुछ कर पाओगे, यहां पढ़ाई लिखाई ना है, जा डकैत हैं,” मास्टर मुस्कुराए और बोले “चंबल है लल्ला, यहां डकैत नहीं बागी होते हैं, और विधायक की तरफ देखते हुए बोले डकैत तो नेता बन गए सारे,” विधायक जी ने शर्म से उनके चेहरे की ओर देखा और निकल लिये।
आखिर मासटाब को अंदर भेजने की तैयारी की गई, एसपी साहब ने कहा कि “मैं चार सिपाही भेजता हूं साथ में मास्टर अपने लिए रख लो यह हथियार नहीं ले जाएंगे,निहत्थे हैं,लेकिन जरूरत पड़ी तो तुम्हें उठा लाएंगे”
मास्टरजी ने चमकती हुई आंखों से एसपी को देखा, कलेक्टर को देखा और बोले “निहत्थे होने का मतलब सिर्फ बिना हथियार के होना नहीं होता, मृत्यु होने में जीवन कब जाता है” और अपना कुर्ता बनियान पर रख चल दिए उस कमरे की ओर,उस समय तक लगभग 300 लोग जमा हो चुके थे, वह अंदर गए,चारों बागी और इंजीनियर सहित पांचों को साथ ले आये और शाम को 4 बजे तक रोडवेज बस से बापस पहुंच कर अपना विद्यालय बंद किया ।
मनीष भार्गव