सिंध नदी / सिंद नदी

सिंध नदी(सिंद नदी) बचपन से इतिहास में सिंधु नदी का जिक्र सुनने को मिलता है, सिंधु तिब्बत की बड़ी नदी है जो पाकिस्तान के आसपास बहती हैइसी के नाम से मिलती जुलती एक नदी मध्यप्रदेश में भी है जिसे सिंध या सिंद नदी कहते हैं यह मध्यप्रदेश के गुना जिले के पास से निकलती है और गुना, शिवपुरी, दतिया, भिंड से होती हुई चंबल में जाकर अपने को समर्पित कर देती है, इस बीच यह नदी इन चारों जिलों की जीवनदायनी है ।इस नदी का पौराणिक काल से महत्व देखने को मिलता है प्राचीन पद्मावती नगर(वर्तमान पंवाय,डबरा ग्वालियर के पास) इसी नदी के किनारे स्थित था जहाँ नागवंशी शासक राज्य करते थे,इसी नदी के तट पर सनद कुमार ने षट रिपु का संहार किया था ।इसी नदी के तट पर सेंवढ़ा स्थित है जहां सनकुंआं जलप्रपात है यह सेंवढ़ा सनकादिक सम्प्रदाय का गढ़ रहा है , इसी के नजदीक एराउर(अहिरारेश्वर) में सिंध के तट पर मानवआकृति का शिव मंदिर है जो अहीरों के प्राचीन राजवंशों द्वारा बनाया गया था । इसी के नजदीक नारदजी की तपस्या स्थली है जिसे आज नारदघाट कहा जाता है ।इसी जगह एक कुंड व गुफा स्थित है ,यही स्थान शुणय पर्वत कहलाता था ।इसी जगह सनकादि ऋषि द्वारा कूपों का उत्खनन किया जो जलहीन थे इसी के बाद सिंध नदी के पानी को इस तरफ लाया गया था ।

मड़ी खेडा(अटल सागर बांध) मोहनी डैम इसी नदी पर स्थित हैं ।कुल 470 किलोमीटर में बहती हुई यह नदी कुंवारी, पार्वती,पहुज महुअर नदी को अपने मे समाती हुई चंबल में एकाकार हो जाती है । पिछले 3 दिन से जो स्वरूप इस नदी का देखने को मिला है वैसा पहले कभी नहीं रहा, हालांकि मड़ीखेड़ा डैम के बाद सेंवढ़ा में एक बड़ी दुर्घटना हुई थी लेकिन वह पूरी तरह मानव निर्मित थी ,इस समय भी जो नुकसान हुआ है उसका कारण प्राकृतिक के साथ मानव निर्मित भी है, नदी में मिलने वाले अधिकांश नाले व्यवस्थित रहवासी क्षेत्र में परिवर्तित हो चुके हैं, नगर पालिका उसका विधिवत संपत्ति कर लेती हैं, नदी के किनारे सभी जगह आम लोगों द्वारा कब्जा किया जा चुका है ,घर बना लिए गए हैं, क्योंकि सभी मानते हैं नदी हमारे हिसाब से ही चलेंगीं,क्योंकि डैम के द्वारा पानी रोक जा सकता है , लेकिन सब यह भूल चुके हैं कि सिंध नदी भी एक वैसी ही नदी है जैसी कोसी या अन्य नदियां हैं, उसका रूप भी बदल सकता है, और हो सकता है यह उसके बदलाव की शुरुआत हो, सिर्फ 3 दिन की बरसात में 1200 गांव डूब में आ चुके थे, कई बड़े बड़े पुल जिन्हें अरबों रुपये खर्च करके बनबाया गया था वह ढह गए, नरवर के पास बने हुए दोनों मध्यकाल के पुल भी कमजोर पड़ गए यह अलग बात है कि नए इंजीनिरिंग की तरह हिम्मत नहीं हारे, सिंध से लगे हुए पूरे क्षेत्र में डर का माहौल है, फसल बचने का तो सवाल ही नहीं है, वेयर हाउस में रखा हुआ अनाज और व्यापारिक सामग्री नष्ट हो चुकी है ,कई लोगों के घर टूट चुके हैं तो कई लोगों के घर डरे हुए हैं, हर तरफ डर का माहौल है, कई गांव में लोग 24 घण्टे छतों पर ही बैठे हैं कि कहीं पानी से वह न जाएं,प्राकृतिक आपदा को यदि रोका न जा सके तो उससे होने वाले नुकसान को कम जरूर किया जा सकता है, पानी निकलने की जगह अतिक्रमण से मुक्त कराकर, जबरदस्ती डैम न बनाकर और भविष्य के लिए प्रॉपर एक्शन प्लान बनाकर,प्रकृति की हीलिंग का यही स्वरूप है, हम लोग नदियों को खा रहे हैं ,पहाड़ों को खा रहे हैं,हमें भी चिंतन करना होगादुआ करें आगे ऐसा न हो कहीं सिंध ने अपना स्वरूप बदल लिया तो हमें भी बदलना होगा ,हो सकता है यह बदलाव की शुरुआत हो

मनीष भार्गव