शून्य और अनन्त

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

अर्थात वह परब्रह्म परमात्मा सभी प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है। यह जगत भी उस परब्रह्म से पूर्ण ही है, क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण से ही उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार परब्रह्म की पूर्णता से जगत पूर्ण होने पर भी वह परब्रह्म परिपूर्ण है। उस पूर्ण में से पूर्ण को निकाल देने पर भी वह पूर्ण ही शेष रहता है।
उपनिषद में यह कथन आता है जिससे ब्रहांड, या ईश्वर को परिभषित किया जाता है
माना जाता है ब्रहांड की एक मात्र भाषा गणित है, शेष सभी भाषाएं मानव द्वारा निर्मित की गई,और बाद में गणित को भाषा नहीं माना गया, क्योंकि उसमें कुछ जोड़ने या बनाने की गुंजाइश नहीं है उसे खोजना पड़ता है और यह करना आसान नहीं है।
यदि हम इसी श्लोक को गणित के सम्बंध में देखें तो जो पूर्ण है जिसमें से कुछ भी निकाल देने के बाद भी वह उतना ही बचता है, जिसमें कुछ मिला देने पर भी वह उतना ही बचता है जिसका आधा कर देने पर भी वह उतना ही बचेगा तो यह इनफिनिटी और जीरो दोनों पर लागू किया जा सकता है
एक नंबर लाइन के इस छोर पर है तो दूसरा उस छोर पर और हम किसी एक को सब कुछ सिद्ध कर देने पर तुले हैं उसे ही सही मान लेना चाहते हैं जबकि दोनों तरफ का रास्ता उसी तरफ जा रहा है और यदि और भी डायमेंशन जोड़ दिए जाएं तो हर तरफ रास्ता उसी और जा रहा है,
यह पता चलने पर भी हम किसी तरफ दौड़ने लगते हैं पर तब पता चलता है यह इनफिनिटी तो हर नंबर के बीच मे हैं 1 से 2 के बीच मे भी और 700 से 701 के बीच मे भी, हम जहाँ है वही सब है बस रुक जाना है , उसे जान लेना है फिर दौड़ रुक जाएगी ।
और भी ज्यादा गहराई से देखेंगे तो पता चलेगा नंबर सिर्फ 1 ही है और सभी नंबर उसी से बने हैं चाहे कोई भी नंबर हो 1 को 1 में ही उतने बार मिला देने से वह बन जायेगा, बस एक परिस्थिति अब भी बचेगी वह तब जब 1 नंबर नहीं होगा उसे हम शून्य कह दे रहे हैं, अब सिर्फ दो ही नंबर बचे 1 और 0(1 की अनुपस्थिति) इन्हीं दोनों पर कंप्यूटर चलते हैं इन्हीं पर सृष्टि, जब उस 1 की असीमित ऊर्जा जुड़ जाती है तो उसे ही अनंत या इनफिनिटी कह देते हैं ।
बस जान लेने भर की देर है, देख लेने भर की देर है, सभी नम्बरों का भृम टूटने लगता है सभी नम्बरों का अहंकार नष्ट होने लगता है, सभी दर्शन, सभी साहित्य सब कुछ विलीन हो जाता है इस शून्य में उसके साथ हो जाने पर और ब्लैक होल का रूप ले लेता है जो इनफिनिटी है शून्य की अनन्त ऊर्जा की, उस रूप की जो 1 नहीं है,
1 प्रकाश है, शून्य अंधकार है दोनों पूरक हैं और विरोधी भी जब एक रहेगा तो दूसरा नहीं रह सकता पर एक के विना दृसरे का अस्तित्व भी नहीं है

मनीष भार्गव