लोड़ी माता नरवर

****लोड़ी माता मंदिर****
मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले की नरवर तहसील में(ग्वालियर से लगभग 90 किलोमीटर दूर,शिवपुरी से लगभग 45 किलोमीटर दूर) यह स्थान है, नरवर को अधिकांश लोग, राजा नल के क्षेत्र के रूप में जानते हैं, इसे प्राचीन समय में निषध राज्य के रूप मे जाना जाता था जहाँ के शासक राजा नल थे,व नल दमयंती की ऐतिहासिक कहांनी इन्हीं की है, कालांतर में यह नलपुर से भी जाना गया, और मध्यकाल में इस पर कछवाहों ने भी शासन किया जो आजकल राजस्थान में है,उसके बाद , प्रतिहार वंश, खिलजी वंश, व मुश्लिम शासकों का अधिकार रहा, 15 वी शताब्दी में यह तोमर वंश के अधीन रहा ,1642 में औरंगजेव ने अमर सिंह को यह किला सौंपा उसके बाद 1804 में सिंधिया शासकों ने इसे आपने कब्जे में ले लिया, और आजादी तक उनके ही कब्जे में रहा, वर्तमान में यह लगभग खण्डहर के रूप में तब्दील हो चुका है, हालंकि पुरातत्व विभाग द्वारा मरम्मत की जा रही है लेकिन 5 किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र में फैले इस किले की मरम्मत पुरातत्व विभाग के बजट के बाहर है ।
यहाँ आज भी लोड़ी माता के मंदिर पर हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं, अक्सर कई लोग यह जानना चाहते हैं कि लोड़ी माता कौन हैं?
इनके बारे में ज्यादा कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं मिल पाती, सिर्फ इतना पता चलता है कि वह नट समुदाय से ताल्लुक रखती थी व किसी भी रस्सी पर बिना किसी सहारे के चल सकती थी, राजा नल द्वितीय(यह महाभारत में वर्णित नल दमयंती से पृथक हैं) के शासनकाल में जो लगभग पूर्व मध्यकाल के है , इनकी प्रशंसा के कारण राजदरबार में इनकी कला देखने को बुलाया गया, और इनसे एक रस्सी पर किले से लेकर अगले पहाड़ तक चलने को कहा गया,(जिसे आज हजीरा नाम से जाना जाता है) इनके बारे में कहा जाता था कि इन्हें तांत्रिक विद्या में भी महारत हासिल थी, राजा ने इस असम्भव प्रतीत होने वाले कार्य को करने के बदले में इन्हें उपहार स्वरूप राज्य का एक हिस्सा देने का वादा कर दिया था, यह बात सेनापति को सही नहीं लगी,व लोड़ी माता को भी डर था कि कोई सैनिक या राजा का कोई समर्थक इस रस्सी को काट सकता है,इस कारण उन्होंने सभी प्रकार के हथियारों को बांध दिया(तांत्रिक विद्या में इसका उल्लेख मिलता है) ताकि उनका उपयोग न किया जा सके,
और जैसा उन्होंने सोचा था वैसा ही हुआ, सेनापति ने रस्सी तोड़ने के कई प्रयास किये, तलवार, हथौड़ा सब चलाया पर रस्सी न टूटी, जब वह हिम्मत हार गया तो उसके एक सैनिक ने सुपाड़ी, काटने के लिए सरौता निकाला, जिसे देखकर सेनापति ने,दिमाग चलाया और उसी सरौता से रस्सी को काटने का प्रयास किया, चूंकि वह कोई हथियार नहीं था और न ही उस पर कोई तांत्रिक विद्या की गई थी, वह रस्सी उस से कट गई और बीच में ही लोड़ी माता की अकाल मृत्यु हो गयी, जिसके बाद उन्हीने अलग रूप में अपनी शक्ति दिखाई व सम्पूर्ण किले को खंडहर में तब्दील कर दिया ।
यह कहानी पूरी तरह सही है या नहीं यह नहीं कह सकता, लेकिन मैंने इसे कई बुजुर्ग लोगों से सुना है व आज भी इसे इस क्षेत्र के कई लोग सुनाते हैं

मनीष भार्गव