*******दरबार ए कमिश्नरी, प्रेम की व्याख्या******
यह कहानी उस दौर की है जब प्रशासन स्वतंत्र हुआ करता था,जब नेताओं ने प्रशासन में हस्तक्षेप करना सीख नहीं पाया था, जब प्रशासन अपनी मंद चाल से चला करता था उसकी चाल हाथी से भी ज्यादा मादक हुआ करती थी, यह घटना उस समय की है जब प्रशासन इतना स्वतंत्र था, इतना मस्त था कि जहां नींद आ जाती वहीं सो जाता था,जहां पर प्यास लगती वहीं रुक कर कुआ खोदने लगता था, जहाँ भूख लगती वहीं गोष्ठी आयोजित करने लगता, यह घटना उस दौर की है जब जिले की सीमा 200 किलोमीटर से ज्यादा हुआ करती थ,जब जिले में विभाग कम होते थे,जो आज कुल 84 विभाग हैं उस समय महेश 28 हुआ करते थे, उन दिनों कमिश्नर व कलेक्टर इतने बड़े पद थे, कि देखने मात्र से राजा भी धन्य हो जाया करते थे ।कई रियासतों के राजा तो उनके ढोक लगाने जाते थे।
ऐसे ही एक मध्यप्रदेश के जिले में कमिश्नर साहब का पत्र प्राप्त हुआ, पत्र प्राप्ति दिनांक से 11 दिन बाद कमिश्नर साहब दौरे पर आ रहे हैं और वह वहां रुकेंगे आसपास की खूबसूरती को निहारेंगे, प्रेम के मुद्दों पर बात करेंगे और अधिकारियों से भी गुफ्तगू करना चाहेंगे ।
पत्र प्राप्त होते ही कलेक्टर साहब एक्टिव हुए जिले के एक रियासत की हवेली जो रेस्ट हाउस हो चुकी थी, को सजाने की आदेश जारी किए गए, लगातार 10 दिन 4 घंटे काम चलने के बाद हवेली को दुल्हन की तरह सजाया गया । कमिश्नर साहब को हवेली में चढ़ाने के लिए हाथी और घोड़ों का इंतजाम किया गया, जिले के अधिकारियों से कह दिया गया 21 जुलाई को कमिश्नर साहब की मीटिंग में आपको आना है। कमिश्नर साहब ने सिर्फ अधिकारियों को बुलाने, के लिए कहा था तो ,कलेक्टर साहब ने अधिकारियों को तो कह दिया लेकिन तहसीलदारों को लेकर थोड़े से असमंजस में थे, कई लोगों की की नजर में तहसीलदार कोई अधिकारी नहीं होता, यह तो किसी तहसील का गेटकीपर है बस, लेकिन उन्हें गांव की जानकारी मांगे जाने काडर था, कहीं ऐसा ना हो कमिश्नर साहब किसी गांव की जानकारी लेने लगें या कहीं गांव में घूमने की चर्चा करने लगे या किसी किसान ने कहीं उनके दरबार में हाजिरी लगाकर कुछ कह दिया तो फिर कैसे संभालेंगे? तब फिर उन्हें लगा कि काम के लिए तहसीलदार चाहिए ही चाहिए और आखिर में तहसीलदारों को निर्देश दे दिए। आखिर समय नजदीक आया कमिश्नर साहब तय समय पर आ गए। वह अपनी एंबेसडर गाड़ी से आए थे उनके साथ एक मोहतरमा भी थी जो उनकी स्टेनो थी, वह टूर पर कभी भी परिवार को लेकर नहीं जाते थे वह सरकार के पैसे की फिजूलखर्ची बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते इसलिए सरकारी टूर पर सिर्फ स्टेनो को ही लेकर जाते थे और उसके लिए सरकार से विशेष परमिशन से एक खूबसूरत स्टेनो नियुक्त करवाई थी, गाड़ी से उतरने के बाद कलेक्टर साहब ने कहा “साहब हवेली तक हाथी से चलेंगे या घोड़े से?” कमिश्नर साहब ने हाथी पर बैठने की इच्छा जाहिर की और और हाथी पर बैठकर मंद मंद मटकते हुए तशरीफ़ और हाथी के बदन के साथ मटक के चले जा रहे थे, उनकी स्टेनो घोड़े पर बैठकर जा रही थी, उनके चारों तरफ सफेद वर्दी में कुछ सैनिक जैसे लोग दिख रहे थे जो असल में 70 कोटवार व अर्दली थे कुछ देर बाद कमिश्नर साहब हवेली पर पहुंच गए, महावत ने हाथी को विठाला साहब को नीचे उतारा और चला गया। साहब अंदर हवेली में पहुंचे उनके रुकने के लिए एक भव्य कमरा सजाया गया था एक बड़ा हॉल था जो किसी जमाने में राजा का शयनकक्ष हुआ करता था।
उसके बाद साहब से पूछा कि “सर घूमने कब चलना है?”
साहब बोले “घूमने नहीं, पहले कल मीटिंग रखते हैं, हम काम के लिए आए हैं, घूमना तो होता रहेगा”
और अगले दिन कलेक्टर साहब ने सभी को बुला लिया हवेली के राज दरबार लगने की जगह पर व्यवस्था की गई राजा की जगह कमिश्नर साहब को बिठाया गया दोनों तरफ गद्दी लगाईं ,एक पीछे टिकने के लिए लगाई गई, उनके पास मंत्री वाली जगह कलेक्टर साहब दूसरी जगह एस पी को बिठाया गया,एक इंच नीचे एस एस पी साहब को व अपर कलेक्टर को बिठाया गया उनसे एक इंच नीचे करके जिला आबकारी अधिकारी व वित्त अधिकारी को और ऐसे करते-करते तहसीलदार तक गद्दे पर आ गए तहसीलदार अंत में फर्श पर बिछे गद्दे बैठे, उन्होंने साहब को नमस्कार किया ही था कि सामने से तांबे के बर्तन और कांसे के गिलासों में पानी आ गया ।
पानी लेकर चार लोग आए हुए थे जो सफेद वर्दी पहने हुए थे, टोपी लगाए हुए थे ,वर्दी चमक रही थी इसमें लाल कलर की हाथ पर पट्टी लगी हुई थी, जैसे पुलिस के कुछ कर्मचारी लगाते हैं ,यह सभी अर्दली या विशेष कोटवार थे जो जरूरत पड़े तो घोड़ा, हाथी चला सकते थे, जिनकी मूंछे बड़ी-बड़ी थी, जो देखने में दमकते थे उनके पास होने मात्र से साहब को अपने आपके राजा होने का फक्र महसूस हो जाता। वह पानी दे रहे थे उसी समय कमिश्नर साहब ने अपनी स्टेनो को बुलाया और कलेक्टर साहब से कहकर अपने ही पास में एक कुर्सी लगवा दी यह गैर गद्देदार कुर्सी थी, उसे नोट करते जाना था।
कमिश्नर साहब साहित्य प्रेमी थे व प्रेम के दीवाने थे कुछ ही देर में कलेक्टर साहब ने कहा “हमारे साहब साक्षात प्रेम की मूर्ति हैं, वह हमेशा हम सब पर प्रेम की बारिश करते हैं, उसी समय कमिश्नर साहब जो अपने को ज्ञानी मानते थे, थोड़ा असहज हुए,और कहने लगे “मैं अपने आप को ज्ञान की मूर्ति समझता हूं, तुम प्रेम की मूर्ति बना रहे हो”
कलेक्टर साहब बोले “सर एक ही बात है ज्ञान और प्रेम दोनों उच्च स्तर की चीजें हैं”
कमिश्नर साहब को यह विषय भा गया, यह उन्हें जरूरत का भी लगा और उन्होंने इसी विषय पर बात करना उचित समझा ,पहले तो लगा कि इस समय सरकारी दौरे पर हैं तो निजी विचार पर बातचीत ठीक नहीं है फिर लगा प्रेम और ज्ञान जैसे विषय निजी कैसे हो सकते हैं यह तो सरकारी विषय हैं इस प्रकार के विषय को निजी समझना ठीक नहीं होगा , ऐसे तो आम लोग इन विषयों को जान ही नहीं पाएंगे, यह विषय अभिशाप बन जाएंगे ,नहीं नहीं यह विशेष नहीं है,यह तो पूरी तरह सरकारी विषय है और जनता का विषय है ,लोक भावना का विषय है इसी पर बात करनी चाहिए, और उन्होंने मौखिक बोलता हुआ स्प्ष्ट आदेश दिया “सभी विभाग प्रमुख इस विषय पर अपने अपने विचार प्रकट करेंगे, और ध्यान रखें इस विषय को अपने विभाग से जोड़कर विचार प्रकट करेंगे जिससे मैं आपके परिचय के बिना ही जान सकूं कि आप किस विभाग के हो, यदि किसी का परिचय नहीं जान पाया तो समझ लो वह मेरे कसौटी पर खरा नहीं उतरा सही काम नहीं कर रहा है, और जो जितना बेहतर बता पाएगा उसका एक प्रमोशन की अनुशंसा मेरी तरफ से पक्का समझो”
आखिर चर्चा शुरू हुई कमिश्नर साहब ने स्टेनो से कहा इसके लिए कुछ नियम तय किए जाएं, सवाल तय किए जाएं, कोई भी यदि अपनी सीमा से दूर हटेगा तो वह ठीक नहीं माना जाएगा, साहब से सलाह लेकर स्टेनो ने घोषणा कर दी, “आपको सिर्फ यह बताना है कि प्रेम और ज्ञान में कौन बड़ा है? और क्यों बड़ा है? और इसे अपने विभाग के संदर्भ में विषय से जुड़कर आपको जवाब देना है”
नियम तय हो चुके थे सब तैयारी में थे सोचने लगे थे क्या बोला जाए कैसे बोला जाए उसी समय सफेद वर्दी पहने हुए दो कोटवार दाईं तरफ दो बाई तरफ कौने से गिलास लेकर चल रहे थे,प्लेट स्टील की थी उस पर कांस्य के गिलास थे पीछे वाला तांबे के बर्तन में पानी लेकर चल रहा था।
सबसे पहले कलेक्टर साहब ने ही बोलना शुरू किया “साहब ज्ञान और प्रेम में यदि बात की जाए तो निर्विवाद रूप से ज्ञान बड़ा है, ज्ञान के बिना प्रेम का कुछ महत्व ही नहीं है, ज्ञान राजस्व है और प्रेम उस राजस्व को वसूलने वाला है, वसूलने वाला इतना महत्व नहीं जितना महत्व स्वयं वस्तु का है,मेरे हिसाब से ज्ञान बड़ा है”
अगला नंबर एसपी साहब का था उन्होंने कहा “साहब प्रेम ही सबसे बड़ा है, ज्ञान की क्या बिसात कि प्रेम से ऊंचा हो पाए, बड़े-बड़े ज्ञान के जानकारों को हम ने प्रेम की चौखट पर नाक रगड़ते देखा है, अच्छे से अच्छे ज्ञानी लोगों को प्रेम के आगोश में समाते देखा है, मेरे हिसाब से तो प्रेम ही बड़ा है, ज्ञान तो प्रेम का दास है, ज्ञान सेवक है व प्रेम सेनापति है, ज्ञान कैद में हैं और प्रेम मुक्त है”
अगला नंबर पर आबकारी अधिकारी बोल रहे थे “साहब मेरे हिसाब से प्रेम ही सबसे बड़ा है, ज्ञान तो कुछ भी नहीं है, प्रेम का नशा ज्ञान से बढ़कर है प्रेम के नशे में जो एक बार डूब जाता है उसे अपने आप ही सारा ज्ञान हासिल हो जाता है, सबसे बड़ा नशा प्रेम का नशा है।
अगला नंबर जिला वित्त अधिकारी का था कि कोषालय के अधिकारी भी थे वह बोले “हुजूर बड़ा तो निर्विवाद रूप से ज्ञान ही है, प्रेम से पेट नहीं भरा जाता,प्रेम पैसे नहीं दे सकता,पैसे और रोटी ज्ञान ही देता है, ज्ञान ही सर्वस्व है ज्ञान के बिना महीने का गुजारा नहीं कर सकते, प्रेम सुख है तो ज्ञान भोजन है, प्रेम मांग है तो ज्ञान पूर्ति है, प्रेम कोरा कागज है तो ज्ञान छपा हुआ गांधी जी का नोट है”
अगले नंबर पर डिप्टी कलेक्टर साहब का था जो धर्मस्य अधिकारी भी थे वह बोले “अब बड़ा तो ज्ञान ही है,ज्ञान देवता है, प्रेम इंसान है, ज्ञान पूजा है,तो प्रेम पूजा की ध्यान पद्धति है”
अगला नंबर बिजली विभाग के चीफ इंजीनियर का था वह बोले “ज्ञान से बड़ा क्या हो सकता है? ज्ञान तकनीक का भी बाप है, ज्ञान ही बड़ा है, ज्ञान उजाला है, प्रेम तो अंधकार है,लोग डूब जाते हैं प्रेम में,ज्ञान आते ही उजाला हो जाता है बत्तियां जल जाती हैं”
यह सब चल ही रहा था कि एक कोटबार जिज्ञासावश बोला “हुजूर छोटे मुहँ बड़ी बात लेकिन इजाजत हो तो हम भी कहें कुछ?”
यह सुनकर स्टेनो मुस्करा गयी,कमिश्नर साहब की तरफ तिरछी आंखों से देखा और कोटबार की बात को नोट करने की मौन सहमति जताई
साहब ने कहा हाँ हॉं कहो
“साहब ज्ञान ही बड़ा है,प्रेम तो कुछ भी नहीं है ज्ञान के सामने”
यह कैसे कह सकते हो,इसका कारण भी बताना है
“हुजूर जो पहुंच से दूर हो वह हमेशा ही बड़ा होता है, प्रेम तो सदियों से हमारी पहुंच में रहा है लेकिन ज्ञान नहीं रहा, तो वही दूर है इसलिए बड़ा है, हम कहें तो ज्ञान कमिश्नर साहब है और प्रेम तहसीलदार साहब”
मनीष भार्गव
कचहरीनामा
किंडल फॉर्मेट