******पटवारी ,आंकड़े और ब्यूरोक्रेसी*****
“जनाकारी- जानकारी ,ए फॉर्मेट वो फॉर्मेट, पूरे दिन इन्हीं चीजों में लगे रहो,फिर कहते हैं नामांतरण पेंडिंग है, सीमांकन नहीं हो पा रहा, सी एम हेल्पलाइन नहीं हो या रहीं, दो दिन में 4000 किसानों की जानकारी बनाना यह सम्भव है क्या? अधिकारी यह नहीं समझते,या मूर्ख हैं अधिकारी?, क्या उनमें इतनी भी बुध्दि नहीं है?”
पटवारी राकेश श्रीवास्तव तेज तेज आवाज में बाबू के सामने चिल्ला रहा था
मैं और तहसीलदार साहब अंदर चैम्बर में बैठे हुए थे और इसी फॉर्मेट की जनकारी पर बात कर रहे थे, मैंने सर से कहा, “सर यह कह तो सही रहा है,इतने कम समय में जानकारी सम्भव तो है नहीं”
“वो तो मुझे भी पता है यार पर करें क्या,अधिकारियों को यह चीज पता नहीं क्यों नहीं दिखती,उन्हें तो यह लगता है कि फोन कटने से पहले जानकारी उनकी टेबल पर हो,पर हम कुछ कह नहीं सकते हम तो सिर्फ डाकिया हैं उनका आर्डर यहाँ लागू करना है,अब जैसे बने पटवारी जाने” तहसीलदार साहब पत्रक का हिसाब लगाते हुए बोले,
थोड़ी देर में राकेश पटवारी चैम्बर में आया और साहब के सामने खड़ा होकर कहने लगा
“सर 6 महीने में तो हमें अपने चार्ज का बस्ता मिल पाया है,पुराना पटवारी दे ही नहीं रहा था,अब इतनी जल्दी कैसे जनाकारी बन सकती है?”
तहसीलदार साहब बोले “कैसे बनेगी मुझे नहीं पता, जैसे सब बना रहे हैं बैसे तुम भी बनाओ,इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता,मुझे जनाकारी चाहिए बस,और मुझे खुद के लिए नहीं चाहिए,सरकार ने मांगी है”
उसी समय मैंने पटवारी से कहा “यदि तुम्हें लगता है इतनी जल्दी जनाकारी नहीं बन सकती तो बड़े अधिकारियों से बोलो उन्हें भी तो पता चले कि नहीं बन सकती, और यदि बन भी सकती है तो कैसे बन सकती है किसी अधिकारी से एक मॉडल के रूप में बनबाकर दिखाओ, यदि तुम अधिकारियों से नहीं कहोगे तो उन्हें पता कैसे चलेगा?”
यह बात पटवारी को सही लगी और वह एस डी एम साहब के पास जाने लगा, मैं भी उसके साथ जाने लगा,
जाते समय तहसीलदार साहब ने धीमी आवाज में कहा, “बड़े साहबों को सब पता है,उन्हें बताने से कुछ नहीं होने वाला, कुछ अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं और कुछ टाइम पास करने में लगे हैं,इसे भेजने से कुछ नहीं होगा”
फिर भी मैं अपनी आदत से मजबूर पटवारी के साथ चल दिया,थोड़ी देर में हम एस डी एम साहब के पास पहुंचे, और उनसे समस्या कही ,उन्हीने यही कहा, “तुम टाइम बेकार कर रहे हो, जल्दी से जानकारी बनाओ ,और चैम्बर से बाहर भगा दिया”
जाते जाते यह जरूर कहा,”तुमसे जनाकारी मांगी है, अच्छी बुरी,सही गलत नहीं बस जानकारी, जैसी सभी भर रहे हैं वैसी तुम भर दो।”
बाहर निकलकर मैंने कहा “इन अधिकारियों को पता भी है यह क्या कर रहे हैं, बस कागज बनाते जाओ,फील्ड में कुछ हो न हो, चलो कलेक्टर साहब के पास चलते हैं सुना है आई ए एस अधिकारी ज्यादा समझदार होते हैं”
हम थोड़ी देर में कलेक्टर चैम्बर पर जा पहुंचे, लेकिन वहाँ चपरासी ने अंदर नहीं जाने दिया
बस यही बोला
“भोपाल से निर्वाचन की जांच करने एक मैडम आयी हैं उनका स्वागत सत्कार चल रहा है,अभी किसी से नहीं मिलेंगे”
हिम्मत हारकर हम अपर कलेक्टर साहब के पास जा पहुंचे, और उनके सामने पटवारी कहने लगा
“सर यह अधिकारी क्या पागल हैं, इन्हें इतना भी नहीं पता कि दो दिन में जानकारी बनेगी तो गलत ही होगी, इनमें इतनी बुद्धि भी नहीं है क्या,ऊपर इतने बड़े बड़े आई ए एस बैठे हैं”
अपर कलेक्टर साहब को आई ए एस अवार्ड नहीं हो रहा था उनके मन की बात होगयी वह भी कहने लगे,”इस देश को ऐसे ही आई ए एस चला रहे हैं, पर हम कुछ कर नहीं सकते जनाकारी तो बनानी पड़ेगी वह भी इसी समय में नहीं तो तुम्हारी जगह दृसरे बेरोजगार तैयार बैठे हैं पटवारी के काम के लिए”
यह सुनकर पटवारी राकेश की आंखों में आंसू आगये वह एक साल पहले ही जॉइन हुआ था उसने मुझे बताया था कि जॉइनिंग में तहसील मिलने के लिए भी स्थापना शाखा के डिप्टी कलेक्टर के यहाँ विशेष प्रयास करना पड़ा, उसके 4 महीने बाद एस डी एम साहब के यहां अति विशेष प्रयास से हल्का मिला और उसके 6 महीने बाद हल्का का बस्ता,अब लग रहा है पुरी जिंदगी ऐसे ही गुजरेगी, उसकी बात सुन अपर कलेक्टर साहब बोले “देखो बेटे अभी तुम नए नए आए हो थोड़ा सा सिस्टम को समझने में देर लगेगी, मोटे तौर पर एक बात समझ लो वर्तमान में देश भर में जो ब्यूरोक्रेसी है उसमें दो प्रकार के अधिकारी और कर्मचारी है एक जो फॉर्मेट बनाते हैं दूसरे वो जो फॉर्मेट भरते हैं, इसके अलावा किसी और प्रकार के अभी बनोगे तो सस्पेंड ही रहोगे ज्यादा कुछ नहीं कर पाओगे इसलिए भलाई इसी में है कि जो कहा जा रहा है वही करते रहो दाल रोटी खाते रहो प्रभु के गुण गाते रहो”
मनीष भार्गव