नवोदय और हम

( यह भाग बेरंग लिफाफे उपन्यास से लिया गया हे )

1996 की बात है जब नवोदय में पहुंचने का आदेश आया। इसमें लिखे हुए इंस्ट्रक्शन के अनुसार मुझे एक बक्सा, दो जोड़ी कुर्ता पजामा, एक बाल्टी, एक मग , एक टार्च ,एक ताला चाबी लेकर नवोदय पहुंचना था, इसके अलावा जो भी किसी को आवश्यक लगे ,ला सकते थे ,जैसे थोड़ा बहुत घर का बना हुआ नाश्ता। घर वालों के लिए बड़ी बेचैनी थी , कि कैसे बच्चा बाहर रहेगा और मेरे के लिए बेचैनी भी और एक उत्साह  भी था , उत्साह इस बात का कि  नया पढ़ने को मिलेगा ,बाहर देखेंगे क्या होता है ,क्योंकि 10 साल की उम्र कोई ज्यादा नहीं होती, फिर भी घर वालों ने तय समय के अनुसार 8 जुलाई को  मुझे नवोदय ले जाने का निर्णय लिया ,

पहुंचने पर पता चला कि लगभग 40 ऐसे ही ,और बच्चे आए हुए थे , जो कि अपने साथ ऐसा ही कुछ सामान लेकर ,उनके पेरेंट्स के साथ ,वहां इंतजार कर रहे थे। स्कूल में एक एमपी हॉल(एक बड़ा सा हाल ) था  , मैंने कभी इतना बड़ा कमरा या इतना बड़ा हॉल ऐसा कुछ देखा नहीं था, मैं उसे चारों तरफ घूर कर देखने लगा ऊपर कई पंखे लगे हुए थे, बहुत सारी खिड़कियां थी, कई दरवाजे थे ,पीछे से कोई आवाज लगा रहा था ,

पंखा चला दो ,

मैंने देखा कि सामने की  तरफ से कोई बोर्ड पर स्विच ऑन कर रहा था, मैं दौड़ कर उस जगह पहुंच गया, जहां से पंखे चालू की जा रहे थे, और मैं उसको देखने लगा उस बोर्ड में लगे स्विच को गिनने लगा , कुल 17 स्विच एक लाइन में, और एक ऊपर मतलब 18 स्विच थे ।ऐसे ही 3 बोर्ड एक लाइन में लगे हुए थे, मैंने तुरन्त हिसाब लगाया कि इस कमरे में लगभग 54 पंखे या लाइट या दोनों मिलाकर हैं । फिर मैं उन्हें भी गिनने लगा, मुझे बहुत मजा आ रहा था, बड़ी खिड़की, दरवाजे, पंखे, इतना बड़ा कमरा यह सब कुछ मेरे लिए नया था, चारों तरफ देखने लगा घूमने लगा ,और इधर उधर जा जा कर देखने लगा

कहां जा रहा है , पापा कहने लगे

 कहीं नहीं  ,यह जवाब अक्सर काम आता था, कहीं नहीं ,घर वाले इसका मतलब समझ जाते थे ,

देख रहा हूँ , क्या हो रहा है ,तभी हमें इंस्ट्रक्शन दिए गए ,

 सभी लोग बैठ जाएं बारी-बारी से बुलाया जाएगा , उस हाल में आठ दस लोग अलग-अलग टेबल कुर्सी लगाकर बैठे हुए थे, डॉक्यूमेंट चैक कर रहे थे  ,कोई कोई कागज देख रहा था कोई मेडिकल चैक अप ,कोई कुछ और ,सब अलग अलग काम मे लगे   थे, लगभग 1 या 2 घंटे में सब कुछ चैक हो जाने के बाद ,या डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन कंप्लीट हो जाने के बाद, हम सभी से कहा गया ,कि आपका एडमिशन फाइनल हो गया है, 15 जुलाई को आप पूरी तैयारी के साथ और जो सामान की लिस्ट आपको दी गई है, उसके अनुसार नवोदय पहुंच जाएं  ।

15 जुलाई को पूरी तैयारी के साथ उनके द्वारा दिए गए समय के अनुसार नवोदय पहुंचे, वहां बरसात का सीजन था , एक छोटा सा छाता भी घरवालों ने साथ में रख लिया था ,नवोदय शहर की भीड़भाड़ से दूर हुआ करते हैं। वहां साइकिल से मेरे पिताजी मुझे  सामान सहित नवोदय छोड़ कर चले गए । अब मैं किसी और के हवाले था ।

नवोदय में एक अलग ही माहौल था ,घर से बाहर पहली बार निकले थे जहां पेरेंट्स नहीं थे ,जहां अनजान लोग थे लेकिन फिर भी डर नहीं था , वहां पहुंचे विद्यालय के प्राचार्य, और कुछ अन्य शिक्षकों ने जो शायद उस समय एडमिशन समिति के इंचार्ज रहे होंगे, उन सभी ने हमें बताया कि हमें कहाँ रुकना है , और किसके साथ हम वहां तक जाएंगे , उस दिन हम सभी को एक ही हाउस में रुकने को कहा गया था ,और यह भी बताया कि कल से आप सबको अलग अलग हाउस अलॉट किये जायेंगे । हाउस  का मतलब एक बिल्डिंग एक रूम ,जहां अधिकतम 40 लोग रुक सकते थे । ऐसी ही एक बिल्डिंग के फर्स्ट फ्लोर पर हमें रोका गया ,कुल दो ही फ्लोर हुआ करते थे ,और एक फ्लोर पर अधिकतम 40 बच्चे रह सकते थे, ऐसे 4 अलग अलग हाउस थे ,गर्ल्स हॉस्टल अलग से था। दूसरी तरफ मैस थी ,जहां जाकर खाना खाया , और अपने रूम में बापस आ गए , पहला दिन था इसलिए इन सब कार्यों में हमारे साथ कुछ सीनियर थे जो हमें गाइड कर रहे थे । उस समय लाइट बहुत ज्यादा कटा करती थी , पूरे मध्य प्रदेश में लाइट का यही हाल था । थोड़ी देर बाद जब लाइट गई, सब लोग अपनी-अपनी टॉर्च निकालने लगे, टॉर्च एक आवश्यक वस्तु थी जो हमें लाने को कहा गया था। बरसात के दिनों में कीड़े निकलना एक आम बात हुआ करती थी । नवोदय के स्थान को देखते हुए यह आज भी अनिवार्य है चीज है । और वह एक ऐसा दौर था जब लाइट कुछ ज्यादा ही जाया करती थी  ।थोड़ी देर बाद बच्चे खेलने लगे ,एक दूसरे की तरफ टॉर्च करके देखने लगे , और उत्सुकता बस चारों तरफ टार्च करने लगे, जैसे इस नई जगह को देखना और जानना चाह रहे हों । तभी बाहर से एक सीनियर आए जिन्होंने कहा

उस तरफ, हाथ से इसारा करते हुए, खिड़की से दूसरी बिल्डिंग की तरफ टोर्च नहीं दिखाएंगे या लाइट नहीं जलाएंगे ।पास में ही गर्ल्स हॉस्टल था,  हम में से किसी एक ने कहा , क्यों ` क्या दिक्कत है,

बताऊं क्या दिक्कत  , उन सीनियर ने कहा अभी जो कहा जाए वो मान लिया करो,

क्या नाम है तुम्हारा `

सनी रजक जोर से उसने अपना नाम बताया

अभी आप सब नए हो, इसलिए यहां की जानकारी नहीं है, पास की बिल्डिंग में दीदी रहती हैं, यह गर्ल्स हॉस्टल है ।

इतना बताकर वो चले गए ।

उस रात हम सब थोड़ी बहुत बात करते हुए सो गए, किसी ने आपस मे अपना अपना परिचय दिया, तो किसी ने घर को बहुत याद किया,तो कुछ ऐसे भी थे जो किसी से बात नहीं कर रहे थे ।

      अगले दिन सुबह हमें ग्राउंड में बुलाया गया, जहां कुछ टीचर ने हमें यह बताया कि अब क्या करना है ,साथ ही सभी को अलग अलग हाउस अलॉट किये गए,  तक्षशिला, शिवालिक ,नीलगिरी, उदयगिरि इसी नाम से 4 हाउस में हॉस्टल बटे हुए थे, मुझे , सनी रजक को, एक ही हाउस मिला ,हमारे साथ मेरी क्लास के और भी 6 लोग थे, अभी तक हमारी जान पहचान नहीं हो पाई थी, उसके बाद हमें बताया गया स्टोर पर जाकर अपने लिए कुछ जरूरी सामग्री ले लें, स्टोर पास ही था हमें वहां तक पहुचाने के लिए खुद स्टोर इंचार्ज साथ मे थे । हम सब उनके साथ सीधे वही पहुंच गए । वहां से हमें एक गद्दा, एक कंबल , एक चद्दर , एक तकिया, एक तकिया कवर ,यह सभी चीजें दी गई । थाली ,चम्मच ,प्लेट ,तेल ,साबुन ,जूते, चप्पल ,यह सब कुछ दिया जाता था । ड्रेस के लिए हमसे कहा गया, कि कुछ दिन में टेलर आएगा उसे अपना नाप दे देना, सब कुछ  उधर से ही मिलता था , हम सब बड़े खुश थे नई नई चीजें देखकर , जहां बताया गया उसी हाउस पर पहुंचकर, सभी अपने अपने पलंग पर जा पहुंचे, पलंग डबल डेकर टाइप के हुआ करते थे एक व्यक्ति नीचे ,और एक सीढ़ियों के जरिये ऊपर बाले पलंग पर रहता था । आमतौर पर ऊपर वाले पलंग पर जूनियर रहा करते थे , और नीचे वाले पलंग पर पर सीनियर रहा करते थे  ।कभी कभी विषम परिस्थितियों में जूनियर की लंबाई ज्यादा होने पर सीनियर की लंबाई कम होने पर अदला बदली भी कर दी जाती थी ।

हर हाउस या बिल्डिंग लिए एक हाउस मास्टर निर्धारित होता था । जो दिन में कम से कम दो बार आते थे ,चेक करते थे कि आप क्या कर रहे हैं, कोई कंप्लेंट तो नहीं है, खाना खाया कि नहीं खाया ,सभी प्रकार की सुविधाएं उस संस्था द्वारा सुनिश्चित की जाती थी , सभी लोग अपने-अपने हाउस में पहुंचे सब के लिए नया अनुभव था ,और नई चीजों के साथ सब लोग बैठे – बैठे आसपास के लोगों को देख रहे थे ।

मेरे साथ हाउस में जो अन्य लोग थे, उनसे परिचय हुआ , उनके नाम थे मनोहर, प्रशांत , यशपाल, आलोक, कपिल, हम सब एक दूसरे से बात कर यह जान रहे थे कि कौन कहाँ से आया है, तभी खबर कि आपको किताब लेने के लिए लाइब्रेरी में जाना है, सभी हॉउस के हमारी क्लास के लड़के, एक साथ लाइब्रेरी पहुंचे, और किताबें लीं, लाइब्रेरियन सर् सभी को नाम से बुलाकर उससे कुछ देर बात कर रहे थे ,

और किताबें देते जा रहे थे ।

पहला दिन हमारा लगभग ऐसे ही निकल गया किताबें मिल चुकी थी,  कुछ दोस्तों से हमारा परिचय हो चुका था   ।  बीच – बीच में सीनियर्स भी आकर हमसे मिलते रहते थे, कुछ बच्चे अभी भी रो रही थे,शायद उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था,पर मुझे बहुत अच्छा लग रहा था,दिन में 2 बार भर पेट खाना खाया, 2 बार नाश्ता किया और रात को दूध पीकर अपने हाउस में बापस आगये ,कभी कभी नाश्ते या दूध के लिए लाइन में लगना पड़ता था पर वो भी एक रोमांचक पल हुआ करता था।

रात में हमारे हाउस के सीनियर ने हम सबसे अपना परिचय देने को कहा, कहाँ से आये हैं, और पहले कोई परिवार का यहां पढ़ता है क्या, यह भी बताने को कहा गया, हम सब  ने वारी वारी से अपना परिचय दिया, सनी हम सब मे सबसे ज्यादा जानकारी रखता था , उसने आपने परिचय के 3,4 सीनियर का भी नाम बताया जिन्हें वो जनता था,उससे हमारे एक सीनियर ने कहा ज्यादा सीनियर के मुहँ मत लगना ढंग से रहना यहाँ  ।

उस दिन हम सब सो गए,10 बजे सोने का टाइम निर्धारित किया गया था  ।  अगले दिन सुबह 4 बजे ही हलचल शुरू होगयी ,Pt का टाइम सुबह 4: 30 से था, मैं भी सबके साथ उठा और तैयार होकर निकल गया ,एक बड़े से ग्राउंड में pti सर् की सीटी की आवाज़ आ रही थी ,अलग अलग समूह में लोग उछल कूद या एक्ससर साइज कर रहे थे शायद हाउस वाइज ,मुझे इस बारे में पता नहीं था मैंने सनी से कहा चलो इस मे चलते हैं, एक जगह सब गोल सर्किल में खड़े थे ,हम भी खड़े होगये  ।

किसी ने कहा यह हमारे हाउस के नहीं है , और फिर हमें वहां से जाने को कहा, इसके बाद हम यही पता करते रहे कहाँ जाना है तब तक pt खत्म हो चुकी थी  ।

(बेरंग लिफाफे का एक अंश , यह किताब तीन भागों मे हें, एक ग्रामीण जीवन दूसरा नवोदय तीसरा शासकीय कार्यालय (जिसका जिक्र अगले ब्लॉग नए कलेक्टर मे पढ़ सकते हें ) , यदि आप इन्हें पूरा पढ़ना चाहें तो बेरेंग लिफाफे मे इसे पढ़ सकते हैं ।)