प्राचीन इतिहास को जानने का मुख्य स्रोत पौराणिक साहित्य है,भारत में हर पौराणिक विषय पर बहुत पाठभेद हैं,अलग अलग ग्रन्थों में श्लोकों का अंतर दृष्टिगोचर होता है, इसके अलावा जैन साहित्य का भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान है, काफी हद का जैन साहित्य वेद और पुराणों के साहित्य की पुष्टि करता है, कुछ जगह दोनों में नाम या घटनाओं के स्वरूप में अंतर देखने को भी मिलता है या कहीं कहीं कुछ अतिरिक्त घटनाएँ भी पढ़ने को मिलती हैं, पर वह अंतर सतही है, मूल कहानी, स्थान और पात्र वही हैं, जब हम जैन साहित्य को गहराई से अध्ययन करते हैं तो कई महत्वपूर्ण जानकारी मिलती हैं, जैन धर्म के 22वे तीर्थंकर नेमिनाथ(अरिष्टनेमि) कृष्ण भगवान के समकालीन थे और उनके परिवार से ही संवंधित थे,वह उनके चचेरे भाई थे, उन्होंने ही कृष्ण जी को वह मोर पंख दिया था जिसे वो मुकुट में लगाते थे ।
नल दमयंती के अध्ययन के दौरान पता चला कि महाभारत के अतिरिक्त एक और सबसे ज्यादा प्रमाणिक व विस्तृत ग्रन्थ है वह है श्रीहर्ष रचित नैषधीयचरितम(निषधचरित), श्रीहर्ष गहड़वाल नरेश जयचंद्र के राजकवि थे, जिन्होंने महाभारत के काफी समय बाद इस ग्रन्थ को लिखा, इनका लिखना मुख्यतः महाभारत से प्रेरित है लेकिन कुछ पात्र अतिरिक्त हैं और कुछ घटनाएं भी ज्यादा हैं, महाभारत में जहाँ इस विषय पर 1062 श्लोक हैं वहीं नैषधीयचरितम(निषधचरित) में 2800 श्लोक हैं, शायद यह इसलिए कि उन्होंने कुछ पीढ़ी दर पीढ़ी सुनी जाने वाली कहानियों को भी उसमें जोड़ा ।
नल दमयंती के पुत्र का नाम इन्द्रसेन था और पुत्री का नाम इन्द्रसेना, इन्द्रसेना का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है यह मुदगल ऋषि की पत्नि थी, जिन्हें कहीं कहीं नलायनी इन्द्रसेना भी कहा है ।
नल दमयंती का उल्लेख ऋग्वेद, महाभारत, वाजसनेय सहिंता के अलावा लगभग 6 पुराणों में भी मिलता है,
जैन साहित्य में इनका उल्लेख हरिवंश पुराण,पांडव पुराण, नेमिनाथ पुराण व त्रिषस्टलक्षणपुराण में मिलता है ।
जैन साहित्य में जो मुख्य अंतर हैं वह हैं
जैन साहित्य में नल दमयंती के पूर्व जन्म की व भविष्य की कहनीं का भी मिलना, जबकि हिन्दू साहित्य में वह नहीं है
जैन साहित्य में तक्षशिला के राजा कदम्ब का भी जिक्र है जबकि इसका जिक्र हिन्दू ग्रन्थों में नहीं है,
हिन्दू ग्रन्थों में इक्ष्वाकु वंशज अयोध्या के राजा ऋतुपुर्ण का और चेदि के राजा सुबाहु का ही जिक्र है
नल दमयंती को आई परेशानी का कारण जहाँ हिन्दू ग्रन्थों में कलियुग व प्रारब्ध है, वहीं जैन साहित्य में सिर्फ प्रारब्ध है
इसे जब आप पढ़ेंगे तो आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इतने प्राचीन साहित्य में अंकविद्या, लोकतांत्रिक विरोध व अश्वविद्या का गौरवशाली वर्णन है ।
और भी कई महत्वपूर्ण जानकारियां और नए शब्द इसे पढ़कर आपको पता चलेंगे, साथ ही यह भी पता चलेगा कि प्रसिद्ध ढोला मारू की कहनीं का राजा नल से क्या सम्वन्ध है। वैसे अधिकांश लोगों ने राजा नल की कहानी पूर्वजों से सुनी होगी पर यह उसी कहानी का पूर्ण रूप है, इसी कहानी को सुनकर पांडवों को भी प्रारब्ध की जानकारी हुई थी
मनीष भार्गव
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मनीष भर्गव