(यह बेरंग लिफाफे उपन्यास के एक हिस्से से लिया गया हे )
उसी दौरान कलेक्टर महोदय का ट्रांसफर होगया, और जो नए कलेक्टर आने वाले थे वो पूरे प्रदेश में सबसे खतरनाक अधिकारियों में जाने जाते थे ।
अधिकारी वो हमेशा अच्छा माना जाता है जो किसी चीज को बदलना न चाहे, जो जमे हुए सेट अप में फिट बैठ जाये,और जैसा चल रहा है बैसा चलता रहे,पर जो सच मे इन सबको बदलना चाहता है उसे खतरनाक अधिकारी बनना ही पड़ता है,
कुछ निर्माण करने के लिए ,कई वस्तुओं का आकार बदलना पड़ता है, तब जाकर एक रचनात्मक इमारत बनाई जा सकती है,
वो कलेक्टर भी ऐसे ही थे, जिन्हें कुछ सबसे ईमानदार समझते तो कुछ अपरिपक्व या अव्यवहारिक समझते,
मुझे भी उनमें उम्मीद की किरण दिखने लगी,मुझे लगा शायद मैं उन्हें अपनी स्थिति समझा पाऊँ ।
पूरे जिले में कर्मचारियों के बीच हड़कंप का माहौल था ,और हो भी क्यों ना कलेक्टर बदले हुए थे, जब भी अधिकारी बदलते हैं तो कर्मचारियों में बेचैनी होना स्वाभाविक ही है, पर इस बार यह आम बेचैनी नहीं थी । जो कलेक्टर आ रहे थे उन्हें खूंखार कलेक्टर के नाम से जाना जाता था । जहां भी जाते थे वहां सस्पेंड और बर्खास्त करने की जड़ी लगा देते थे,
सभी अपने अपने तरीके से उनकी व्याख्या कर रहे थे ,स्टेनो कह रहा था हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कोई भी चला आए, बिना हमारी जानकारी के काम नहीं कर सकता, अच्छे-अच्छे कलेक्टर देख लिए । वहीं एक बाबू बता रहे थे, मैंने भी 11 कलेक्टर देख लिए अपने जीवन में, सिर्फ आठ -दस दिन अपना रोल दिखाते हैं, अपना रुतबा बताने के लिए, बाकी सब सेट हो जाता है और फिर सब लाइन पर आ जाते हैं ।
सभी एसडीएम ,तहसीलदार डिप्टी कलेक्टर ,सभी में हड़कंप था ।
एसडीम साहब पटवारियों को समझा रहे थे ,यह कलेक्टर बहुत स्ट्रिक्ट हैं, उनके आने के चर्चे पहले ही फैल जाते हैं, और पटवारियों को सबसे ज्यादा टर्मिनेट करते हैं, किसी भी गांव में फौती नामांतरण का केस पेंडिंग नहीं रहना चाहिए,
मैं कलेक्टर कार्यालय में स्थित कानूनगो शाखा में स्थायी काम करने लगा ,जहां कई बार कुछ मामलों में sdm साहब बुला लेते थे, एक दिन ऐसे ही उसी चर्चा के दौरान sdm साहब ने मुझे बुलवाया और उसी समय सभी पटवारी जमीन पर फर्श बिछाकर बैठे हुए थे,
यह बात सुनकर राधेश्याम पटवारी जो सबसे उम्र दराज़ और अनुभवी थे कहने लगे, साहब हमने 18 कलेक्टर देख लिए, जो हम लिख देते हैं उसे कोई नहीं काट सकता ,यही असलियत है, कोई कलेक्टर आजाएं, किसी को जानकारी नहीं होती, असल मे जमीन पर क्या हो रहा है ।
बस हवा हवाई बातें करते हैं 18 में से सिर्फ दो ही कलेक्टर ऐसे थे जिन्हें पता था कि जमीन कैसे नापी जाती है । वरना किसी को कुछ पता ही नहीं था यह सुनकर सभी हंसने लगे ।
एसडीएम बोले जमीन नापना होता तो पटवारी नहीं बनते, कलेक्टर क्यों बनते, एसडीएम साहब शायद यह बताना चाह रहे थे कि बड़े अधिकारियों का छोटे काम सीखना जरूरी नहीं होता ।
अगले दिन उन्होंने ज्वाइन किया पहले ही दिन सभी अधिकारियों की मीटिंग ली और उसमें दो डिप्टी कलेक्टर को बहुत ज्यादा डाटा , यह बात पूरे जिले में आग की तरह फैल गई
अरे डिप्टी कलेक्टर और एसडीएम को भी नहीं छोड़ते वह हम किस खेत की मूली है ,बच के रहना कोई भी गलती हुई तुरंत उड़ा देंगे. सीधा टर्मिनेट करते हैं, तो कोई कहता अरे टर्मिनेट करना आसान नहीं होता, ससपेंड कर सकते हैं बस ,फिर फिर सब बहाल हो जाते हैं .हमने ऐसे कई देखे हैं धीरे-धीरे वात फैलती जा रही थी ।
कलेक्टर साहब के बारे में जो परिचय था वह सही था पहले दिन से ही उन्होंने यही करना शुरू किया पहले दिन की जनसुनवाई में एक पटवारी को सस्पेंड कर दिया गया अगले दिन स्कूल में छापा मारने पर एक टीचर को सस्पेंड कर दिया गया. 3 आंगनबाड़ी सहायिकायों को हटा दिया गया । उनकी सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि ऑन स्पॉट फैसला करते थे किसी को ज्यादा वक्त नहीं देते थे , सब लोग हाथ जोड़कर यही कहते रहे थे साहब हमारी भी तो सुन लो, आप एक तरफा फैसला क्यों करते हैं ,पर उन्हें इस बात पर हमेशा भरोसा था ,कि मेरे से गलती नहीं हो सकती । वह कहते थे, जब सब दिखाई दे रहा हो तो ,फिर सुनने की जरूरत नहीं है ,जो चीज दिखाई दे रही है उसमें सुनने की गुंजाइश नहीं बचती । धीरे-धीरे ऐसे ही चलता रहा कई अधिकारियों ने ट्रांसफर ले लिया । क्षेत्र के विधायक जो मंत्री भी थे, कई लोग उनके पास जाकर गुहार लगाते, मंत्री जी भी यही बोलते कलेक्टर का ट्रांसफर करवा देते हैं ।
बरसात के मौसम में एक दिन उस जिले का एक पुल ढह गया ,जो कि 6 महीने पहले ही बना था उस पुल के ढहने से 8 लोग दब गए । जिनकी अचानक मृत्यु हो गई , यह मुद्दा बहुत बड़ा बना , आखिरकार विधायिका ने अपनी जिम्मेदारी और दायित्व का बोध कराते हुए, विपक्ष का मुहँ बन्द करने के लिए जनता को जनता का दिखाने के लिए,आनन फानन में वह हरकत में आई, और अपने अधिकार का उपयोग करते हुए तुरंत कलेक्टर को सस्पेंड कर दिया गया । कलेक्टर को सस्पेंड करना इतना आसान नहीं होता, बड़े लेवल से परमिशन लेनी पड़ती है, कलेक्टर कोई पटवारी या टीचर नहीं है जिसे तुरंत सस्पेंड किए जा सके , कमिश्नर से होते हुए राज्यपाल तक परमिशन ली जाती है । पर ऐसे मामलों में सब कुछ तुरंत हो जाता है .सरकार चाहे तो सब सभी फॉर्मेलिटी आसान है, और यही हुआ कलेक्टर साहब को सस्पेंड कर दिया गया । पूरे प्रदेश में हल्ला मच गया, कलेक्टर को सस्पेंड कैसे किया जा सकता है यह तो संभव ही नहीं है .कलेक्टर साहब कहते रह गए साहब मेरी तो सुनो , यह पुल मैंने नहीं बनाया था. मुझे नहीं पता था इसका उदघाटन भी कब हुआ था, यह मेरे कार्यकाल से पहले के है, उन्हें इस बात की शिकायत रही कि मुझे सुने बिना,एक तरफा कार्यवाही हुई ।
मनीष भार्गव
(यह बेरंग लिफाफे से लिया गया हे , यदि आप इसे पूरा पढ़ना चाहें तो किताब मे इसे पढ़ा जा सकता हे । )