तहसीलनामा

******तहसीलनामा****** पार्ट –

1खल्क खुदा का, मुल्क बादशाह का एवं राज्य कम्पनी सरकार का,अधिकार व सुविधाएं कहीं और व जिम्मेदारियां कहीं और,1857 की यह कहावत आज तहसीलदार के सम्बंध में पूरी तरह सही सिद्ध होती है,यदि इतिहास की बात करें तो जमीन के मामले में पहले राज्य को कोई विवाद दिखाई नहीं देता था ,क्योंकि भूमि अवादी से ज्यादा थीपूर्व में भूमि की उपलब्धता इस प्रकार थी, कि कई लोग सिर्फ इसलिए ही भूमि नहीं लेते थे कि उसके बदले में लगान देना पड़ेग,20वीं सदी में तक सिर्फ कद्दू के बदले भूमि देने का उदाहरण मिल जाता है ।पहले गांव का सीमा निर्धारण नदी, पहाड़, झरने या किसी प्राकृतिक निशान से निर्धारित किया जाता था, और जहां ऐसा कुछ नहीं था तो सीमा चिन्ह स्थापित किये जाते थे ।शेरशाह सूरी के समय इसे व्यवस्थित करने का प्रयास किया गया व बाद में अकबर के समय टोडरमल ने इसे और भी आगे बढ़ाया, सूबा या नायव सूबा का पद पहले से प्रचलित था , टोडरमल के समय पटवारी , कानूनगो व नायब तहसीलदार नियुक्त किये गए, उसी समय से खसरा और खतौनी को एक राज्य के दस्तावेज के रूप में प्रशासनिक रूप से स्वीकार करने की बात हुई, यह भारतीय समाज के अनुरूप इतनी सही सिद्ध हुई कि अंग्रेजों ने भी इन पदों व प्रक्रियाओं में विल्कुल भी छेड़छाड़ नहीं किया , इस विभाग का नाम माल विभाग हुआ करता था व माल गुजारी शासन का प्रमुख आय थी ।राज्य में जो अधिकार राजा के थे वही अधिकार तहसील में तहसीलदार के थे , मुग़ल से लेकर, मराठा, राजपूत, अंग्रेज व आजादी के बाद प्रजातंत्र में भी सरकार व राजा बदलते रहे लेकिन तहसीलदार प्रमुख पद रहा, आज भी तहसीलदार प्रशासन का प्रमुख पद है ,व पटवारी एवं खसरा खतौनी आज भी उसी रूप में हैं, यहां तक कि जमीन नापने बाली जरीब भी वही है ।लेकिन समय के अनुसार सरकार ने तहसीलदार के ऊपर एक कलेक्टर का पद बना दिया व तहसीलदार की शक्तियां कम कर दी गईं, हालांकि उसके कर्तव्य व कार्य हर वर्ष बढ़ते रहे, एवं आज भी तहसीलदार ग्राम व राज्य स्तर पर एक कड़ी के रूप में काम करता है ।तहसीलदार 500 साल पुराना पद है और कलेक्टर महज 200 साल पुराना ,तहसीलदार का पद प्रशासनिक न होकर राज्य व जनता के बीच की कड़ी था जो स्वभाव में आज भी वैसा ही है क्योंकि यदि तहसीलदार को हटा दिया जाए तो पूरा प्रशासन ही फैल है, यहां तक कि पुलिस प्रशासन भी , क्योंकि देश मे जितने भी मुकदमे हैं उनमें 80% सिर्फ जमीन से सम्बंधित हैं और कोई भी बड़े से बड़ा मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी जमीन के बारे में उतना ही जानता है जितना तहसीलदार जानने देता है ।एक समय था जब कलेक्टर भी तहसीलदार साहब कर संबोधित किया करते थे, तहसीलदार एक महत्वपूर्ण पद था, सरकार जिस काम मे भी सफल नहीं हो पाती उसे तहसीलदार को सौंप दिया जाता और सफलता के बाद उसके मूल विभाग को सम्मानित कर दिया जाता, नसवंदी ,20 सूत्रीय कार्यक्रम और जनगणना ऐसे ही उदाहरण हैं, हालांकि अधिकारिओं ने इसके लिए तहसीलदार और उसके अमले को कभी सराहना नहीं दी, आज भी एक तहसील से एक साल में इतनी जानकारी भेजी जाती है कि एक ट्रक कागज भरे जा सकते हैं ।किसी भी राज्य का राजस्व विभाग इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, अभी तक यह सब तहसीलदार तक सीमित था जहां जिम्मेदारी तो सभी थी लेकिन अधिकार छीन लिए गए हैं व किसी भी चीज की असफलता के लिए भी उन्हें जिम्मेदार ठहराना आसान है, इसमें वरिष्ठ अधिकारियों की बड़ी भूमिका थी, खासकर जो डायरेक्ट आईएएस बने हैं उनका ईगो व जमीनी स्तर से दूरी ने यह निर्णय आसान कियेलेकिन एक झटके में कमिश्नरी सिस्टम लागू होने के बाद उन्हें यह पीड़ा समझ मे आने लगती है, जब जिम्मेदार तो कलेक्टर होता है, लेकिन उसकी सबसे बड़ी ताकत छीन ली जाती है, कुछ साल बाद यह हाल होता है कि कलेक्टर एक बाबू से ज्यादा कुछ नहीं होता, लेकिन तहसीलदार तब भी अप्रसांगिक नहीं होता, (इंदौर, भोपाल में लगे हुए कमिश्नरी सिस्टम से देख सकते हैं)क्रमशः…………..यह तहसील कार्यालय से परिचय कराने की एक श्रंखला है जिसमें समय समय पर आपको ऐसी ही जनाकारी व कहनीं के रूप में कुछ उदाहरण पढ़ने को मिलेंगे ।मनीष भार्गव