एक समय की बात है, जिले में प्रदेश के प्रभावी मंत्री आने वाले थे जो उस समय जेल मंत्रालय का चार्ज देख रहे थे, उनके रुकने के लिए सर्किट हाउस में समस्त व्यवस्था की गईं, सर्किट हाउस शहर से थोड़ी दूर था,सर्किट हाउस हमेशा ऐसे ही दूरी पर होते थे ताकि उसके अंदर चलने वाली घटनओं से जनता व आम कर्मचारी बाकिफ न हो सके,मंत्री महोदय की ट्रेन जो नजदीकी संभागीय मुख्यालय पर रुकती थी उसके बाद वहां से गाड़ी से उन्हें रात के 12 बजे के आसपास इस जिले में पहुंचना था ।
काफी देर होगयी मंत्री जी नहीं आये, उस समय मोबाइल नहीं चलते थे, ट्रेन की लोकेशन भी नहीं देखी जा सकती थी, इन्टरनेट तो बहुत काल्पनिक चीज थी ।
रात ज्यादा होने पर कलेक्टर साहब ने ADM साहब को कहा, कि “तुम देख लेना, मैं जा रहा हूँ” थोड़ी देर में ADM साहब ने भी SDM साहब से कहा “तुम देखते रहना, और जैसे ही मंत्री जी आजाये मुझे ड्राइवर से बुलबा लेना,”
थोड़ी देर बाद SDM साहब ने भी तहसीलदार से कहा, “जैसे ही मंत्री जी आजाएँ मुझे बुलबा लेना, और उससे पहले ADM साहब के बंगले से खबर करते हुए आना”
“ठीक है साहब हम तो हेंयीं डटे हैं, आप आराम करलो, हम बुलबा लेंगे” तहसीलदार ने जम्हाई लेते हुए जबाब दिया
आखिर में तहसीलदार, व जेलर बचे रहे, जेलर के विभाग के मंत्री थे इसीलिए उसके पास तो कोई ऑप्शन भी नहीं था, और साथ में नगर हल्के का पटवारी भी था यह तीनों ,तहसीलदार का ड्राइवर व मंत्री जी का सामान उठाने के लिए एक कोटवार, जेलर के साथ दो प्रहरी व ड्राइवर सहित कुल सिर्फ 8 लोग बचे रहे ,दो जीप थीं एक जेलर की एक तहसील की, उन्होंने काफी देर इंतजार किया, फिर भी कोई आता न दिखा,
तभी देखा एक जीप जिस पर पर्टी का झंडा लगा था सायं से निकल गयी, पटवारी बोला “मंत्री जी निकल गए,” जेलर ने कहा “नहीं नहीं रेस्ट हाउस पर ही रुकेंगे पहले ऐसे डायरेक्ट थोड़ी निकल जाएंगे” जेलर को अपने मंत्रीनकी जनाकारी थी,इसलिए उन्होंने कहा यह गाड़ी उनकी नहीं है,
रात काफी हो चुकी थी तो तहसीलदार ने भी पटवारी का समर्थन करते हुए बोला, “लगता है मंत्री जी सीधे जेल निरीक्षण के लिए निकल गए, या हो सकता है ड्राइवर को यहाँ का पता न हो इसलिए आगे ले गया” और
तहसीलदार साहब ने कन्फर्म करने के लिए जेल पर फोन लगाया,
तहसीलदार साहब ने बोला “कौन बोल रहा है” उधर से एक आरक्षक ने फोन उठाया था उसने जबाब देने की जगह इन्हीं से पूछा “आप कौन साहब बोल रहे हैं” तहसीलदार साहब झुंझलाहट में तो थे ही झिड़ककर पूछा “वहां पर मिनिस्टर साहब आये हैं कि नहीं” उस आरक्षक ने फिर पूछा आप कहाँ से बोल रहे हैं, तहसीलदार साहब झल्ला गए, समझ गए कि मंत्री तो वहाँ नहीं पहुंचे अन्यथा यह बता देता, और कहा “जहन्नुम से बोल रहे हैं” और फोन रख दिया ।
कुछ देर बाद रेस्ट हाउस की घण्टी बजी तहसीलदार साहब ने ही फोन उठाया, उधर से आवाज आई “जेलर साहब हैं क्या, यदि हाँ तो बात करा दीजिए, अर्जेंट बात है” टेलीफोन जेलर साहब को दिया गया, उन्हीने डरते हुए फोन हाथ मे लिया,
उधर से आवाज आई “फोन था सर्, अभी जहन्नुम से,टेलीफोन आया था, और वो मिनिस्टर साहब की पूछ रहे थे।” जेलर साहब ने फोन रख दिया, वह और तहसीलदार हंस हंस कर लोट पोट होगये
तभी देखा मंत्री जी की गाड़ी आ चुकी है, दोनों जीप अपने अपने अधिकारियों को खबर करने चल दीं,
इसी दिन की एक बड़ी घटना है जिसने मध्यप्रदेश की सरकार को हिला दिया था ।
मध्यप्रदेश के प्रशासनिक हलकों में रेस्ट हाउस की कई कहानियां प्रचलित हैं, जिनमें से कुछ घटनाएं सरकार व प्रशासन के लिए दाग हैं तो कई मनोरंजक हैं, समय समय पर उन्हें यहां शेयर किया जाएगा