कानून और प्रशासन पार्ट – 1

कानून को सरल बनाने की भी जरूरत है,सरल से मतलब ,कानून की भाषा ऐसी हो जिसे हर कोई समझ सके,जिसके लिए किसी भाषा विद या किसी विशेष योग्यता बाले व्यक्ति की जरूरत न पड़े, जो अपने आप में अपनी व्याख्या कर रहा हो,जिसकी व्यख्या करने के लिए कई बड़ी समिति न बनानी पड़ें ।क्या यह सम्भव है?विल्कुल है ,जिस प्रकार शिक्षक दिन रात इस बात पर बल दे रहे हैं कि शिक्षा का कंटेंट इस प्रकार हो जिससे हर बच्चा उसे समझ सके, विना शिक्षक के, विना किसी की मदद के, वैसे ही कानून में भी प्रयास किया जा सकता है।क्या कठिन भाषा लिखने या बोलने बाले को विद्वान माना जाए या उसे विद्वान माना जाए जिसने उसे सरल कर के सबको समझा दिया, ।असल मे सरल होना ही असली विद्वता है, भाषा मे भी और जीवन मे भी,अधिकांश न्यायालयों के आदेश वकीलों को भी प्रथम दृष्टया स्प्ष्ट नहीं होते,उन्हें इसे स्प्ष्ट करने के लिए भी मेहनत करनी पड़ती है । फिर वादी, प्रतिवादी क्या समझेंगे ,कई अधिकारी इस बात से सहमत होते हैं कि भाषा सरल की जानी चाहिए,लेकिन उनके कुछ पूर्व अनुभव, कुछ लोगों की चालाकियों व अपने अभिजात्य दिखने की बजह बीच मे आजाती है, ऐसी ही एक घटना आज मैं लिख रहा हु, जहाँ एक सरल अधिकारी को कठिन बनना पड़ता है ।कुछ बर्ष पूर्वपंचायत चुनाव में कई जिम्मेदारियों को हम निभा रहे थे, उस समय ,पंच, सरपंच के आवेदन तहसीलदार द्वारा, जनपद सदस्य के आवेदन sdm द्वारा और जिला पंचायत के आवेदन कलेक्टर द्वारा स्वीकार किये जाते हैं , हालांकि इनको लेते समय कलेक्टर खुद समय खराब नहीं करते उनकी जगह उनका कोई प्रतिनिधि अपर कलेक्टर या कोई संयुक्त कोलेक्टर होता है, इन सबके लिए विधिवत अधिसूचना जारी की जाती है, आवेदन मांगे जाते हैं, आवेदन एक तय फॉमेट में स्वीकार किये जाते हैं, जिसकी जानकारी अभ्यर्थियों को नहीं होती, यह काम तहसील या कोलेक्टर कार्यालय के बाहर बैठे हुए वकील या वकीलों के शिष्य द्वारा किया जाता है, साथ ही ऐसे लोग अभ्यर्थियों को डराकर कहते हैं, “कम से कम 2 या 4 फॉर्म भरना, अधिकारियों का भरोसा नहीं होता,यह सरकार के एजेंट होते हैं कोई कमी लगी तो उड़ा देंगे, इसलिए अलग अलग तरीके से फॉर्म भरो,” और बड़े बड़े प्रत्याशी, यहाँ तक कि पूर्व।कैबिनेट मंत्री भी यह करते हैं,।दरअसल उस आवेदन को अभ्यर्थी द्वारा उतना ही पढा और समझा जाता है जितना, lic का फॉर्म या बैंक एकाउंट का फॉर्म भरा या समझा जाता है ।ऐसे ही एक आवेदन के निरस्त होने पर हल्ला होगया, कलेक्टर साहब को दृसरे राज्य से किसी मुख्यमंत्री कार्यालय से मुख्यमंत्री के नाम पर धमकी प्राप्त हुई, इसे सुनकर कलेक्टर साहब ने सभी अधिकारियों को बुलाया, चूंकि दृसरे राज्य के मुख्यमंत्री एक बड़ी पार्टी से हैं जिनकी सरकार इस राज्य में भी बनने का डर है इसलिए अधिकारी रिश्क़ नहीं लेते, वह सबके लिए काम करते हैं,अधिकारी पूरी तरह से लोकतांत्रिक होते हैं, वह सत्ता के साथ होकर देश की सेवा करते हैं ।चूंकि आवेदन निरस्त करने की बजह संवंधित व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर गलत जगह करने व उसके द्वारा लिया गया लोन न चुकाने, और गलत noc लगाने का आरोप था,(अभी यह सिर्फ आरोप ही था),कुछ ही देर में कलेक्टर चैम्बर में, दोनों अपर कलेक्टर, 2 संयुक्त कोलेक्टर, 4 sdm ,दो रीडर और मैं हाज़िर था, मैं इसलिए था कि निरस्त मेरे ही द्वारा कोलेक्टर महोदय के डिजिटल हस्ताक्षर किए जाते थे, अब यह तो संभव नहीं है कि कलेक्टर साहब खुद पैन ड्राइव जैसा इंस्ट्रूमेंट लेकर कंप्यूटर पर बैठे और माउस या की बोर्ड क्लिक करें, ऐसा करना होता तो किसी कम्पनी के Md/ ceo बनना पसन्द करते वो आईएएस नहीं ।मई की लपट भरी गर्मी में ,कलेक्टर कार्यालय के बाहर 400 से ज्यादा लोग जमा थे, उन्हें पुलिस द्वारा 500 मीटर दूर रोल रखा था, अंदर A.C. चैम्बर में साहब सबसे बात कर रहे थे ।”लक्ष्मण सिंह के सारे दस्तावेज दिखाओ ” कलेक्टर साहब बोले एक रीडर जिसे सबसे पीछे खड़े होने के लिए कहा था वह फ़ाइल लेकर साहब के पास जा पहुंचा ,औऱ चारों फ़ाइल ,दस्तावेज सहित पेश की, “यह फॉर्म लक्ष्मण सिंह ने ही भरा है क्या ” कलेक्टर साहब ने पूछा”साहब साइन तो उसी के हैं, अब अपने हाथ से थोड़ी कोई भरता है,वकील ने भरा होगा,” अपर कलेक्टर ने कहाअधिसूचना में देखो क्या लिखा है ……… आगे अगले पार्ट में

मनीष भार्गव