ऋण कृत्वा घृतं पीबेत ।भस्मी भूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत:”।‘जब तक जियो सुख से जियो कर्ज लेकर घी पियो शरीर भस्म हो जाने के बाद वापस नही आता है।‘– चार्वाककिसी भी विकसित देश में बैंकिंग प्रणाली का बहुत बड़ा महत्व है, इसी के जरिये लोगों को पैसा देकर जबरदस्ती खर्च के लिए उकसाया जाता है और लोगों को कई तरीके से लालच दिखाए जाते हैंचूंकि मानव मूलतः लालच का सेवक है और वह ज्यादा से ज्यादा प्राप्त करने व भोगने को ही जीवन मानता हैआजकल मध्य वर्गीय परिवार में कम समय में ज्यादा पा लेने की होड़ मची है हर मध्यवर्गीय व्यक्ति एक ही झटके में बड़ा हो जाना चाहता है, वह शादी में इस तरीके से खर्च करता है कि उसे लगता है एक रात में ही सब उसे अम्बानी मान लेंगे, कार ऐसी खरीदना चाहता है कि जो सुविधाएं घर में उसके बेटे को नहीं मिल रहीं वह कार में उसे दिखाने को मिलेंघर ऐसा खरीदना चाहता है कि दूसरों को देखने में कैटरीना का फ्लैट लगेऔर यह सब करते कैसे हैं कर्ज सेअब यदि आप इस कर्ज के साथ चलने बाले व्याज को इग्नोर भी कर दें तो भी आप 10 से 20 वर्ष जिस मानसिक प्रताणना या समय से गुजरते हैं कभी उसे भी कैलकुलेट करें क्या वह जस खुशी से ज्यादा है जो आपको घर या गाड़ी खरीदने में मिली है।कल एक मित्र की इनकम डिटेल वेरीफाई कर टैक्स कैलकुलेट कर रहा था तो यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उसके द्वारा बैंक से लिये गए होम लोन की emi एक साहूकार से लिये गए लोन से भी ज्यादा खतरनाक है, पूरी साल में 4 लाख का पेमेंट करने के बाद भी सिर्फ 60000 का मूल कटा है और 340000 का सिर्फ व्याज जबकि कहने को व्याज दर सिर्फ 7% हैऔर यह emi उसे रोज मजबूर करती है सरकार को गाली देने के लिए, बैंक को गाली देने के लिए, कभी कर्ज माफ के लिए, कभी वेतन बढ़ जाने के लिए, कभी टैक्स बचाने के लिए,कभी वेतन लेट होने पर दूसरों से मांगने के लिए,यह सिलसिला अगले 20 वर्ष चलने वाला हैमतलब अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय सिर्फ झुंझलाहट और पूरी दुनिया को कोसने में ही निकल जायेगा, जबकि आपका एक निर्णय आपके जीवन को खुशी से निकलने में मदद कर सकता है ।
मनीष भार्गव