एस डी एम साहब औऱ बाबूजी

बाहर बड़ी तेज बरसात हो रही थी इस कारण उस दिन कोई भी व्यक्ति ऑफिस में नहीं आया, ऑफिस खाली था पर एसडीएम साहब डाइस पर बैठे हुए थे,एक हाई कोर्ट के आर्डर को समझ नहीं पा रहे थे इसलिए उसका अर्थ खोजने के लिए 2,4 कितांबें निकालकर व्यस्त थे, उसी जगह पास में मैं बैठा कंप्यूटर पर उनके द्वारा बताए गए हाई कोर्ट के अन्य आदेश निकालकर देख रहा था ।

डाइस के दूसरे साइड कॉर्नर में बाबूजी बैठे हुए थे जो मूंगफली खाते खाते धीमे स्वर में गाना गा रहे थे “तुम तो ठहरे परदेशी, साथ क्या निभाओगे टुडुन टुडुन टुडुन

उसी समय देखा एक कुर्ता पजामा पहने हुए आधा भीगा हुआ व्यक्ति अंदर आता है, उसके हाथ में छाता था ,छाता एक तरफ दरबाजे के पास रखता है, बाबूजी से नमस्कार करता है, और एसडीम साहब के आगे आकर खड़ा हो जाता है, और एक आवेदन प्रस्तुत करता है उस आवेदन पर लिखा हुआ था उसके गांव से शहर को आने वाला जो पुल है वह पूरा बन चुका है लेकिन उसको चालू नहीं किया दोनों तरफ से रोक कर रखा हुआ है कृपया उसे खोल दिया जाए ।

यह सुन एसडीम साहब बोले कि इसका अभी उदघाटन होना है कुछ दिन में खुल जाएगा वह बोला “साहब उदघाटन जरूरी है कि चलना जरूरी है”

वह नेता उस जिले के मंत्री का विरोधी था तो उनके खिलाफ लोगों को भड़काने का कोई मौका नहीं छोड़ता था, वह बोला “साहब रोड़ चलने के लिए है या नेता जी के दिखाने के लिए,वैसे भी पैसा हम सब के टैक्स का है कोई नेताजी के घर का नहीं,”

यह सुन एस डी एम साहब समझाते हुए बोले “वह आप सबके ही नेता हैं उनकी मेहनत से ही ऐसे प्रोजेक्ट मंजूर होते हैं इसलिए इतना बनता है”

वह बोला “तो साहब 1,2 दिन में ही उदघाटन करवाओ नहीं तो पूरे गांव की जनता धरना देगी”

“ठीक है मैं मंत्री जी से बात करता हूँ,” यह कहकर एस डी एम साहब सामने पड़ा कागज उठाकर पढ़ने लगे

अब एस डी एम साहब कोई इतने बड़े अधिकारी तो हैं नहीं कि मंत्री से कुछ कह पाएं लेकिन नेता के सामने अपनी लाचारी तो बता नहीं सकते और जनता की नजर में अपनी इज्जत भी बनाये रखनी है,

कौन में बैठे हुए बाबू ने माहौल को भांपते हुए कहा “नेताजी पुल बनने से ज्यादा जरूरी है उदघाटन होना “

“वो कैसे?” नेताजी ने पूछा

“अब तुम अगर जे जानते होते, तो आज मंत्री की जगह होते,ऐसे ही नहीं कोई मंत्री बन जाता”

“तो बताओ कैसे हमें भी समझाओ”

“अच्छा फ्री में समझना चाह रहे हो क्या ,जाओ कोटबार को पैसे दो, और चाय मंगवाओ”

नेताजी ने कोटवार को 50 रुपये दिए

“50 से क्या होगा कम से कम 100 दो,बरसात में जायेगा,”

नेताजी ने 100 रुपये निकालकर दे दिए और बाबूजी के पास आकर बैठ गए और बोले “अब बताओ?”

बाबूजी बोले”देखो तुम्हारा जन्म हुआ तो उसकी एक तारीख फिक्स रहती है, और वह क्या तारीख है यह कौन बताता है जन्म प्रमाण पत्र,

तुम क्या हो कब के हो यह सब तुम्हारे होने से नहीं होता यह सब एक प्रमाण पत्र की बजह से तय होता है,

मतलब जन्म होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है जन्म होने का सबूत होना”

“जे क्या बात हुई बाबूजी,मतलब हमारा जन्म होना ही नहीं माना जायेगा यदि प्रमाण पत्र नहीं है तो,क्यों बेबकूफ बना रहे हो बाबूजी” नेताजी बोले

“बस जेई तो कमी है तुममें तबहिं तो तुम मंत्री नहीं बन पा रहे”

नेताजी कुछ देर चुप रहे फिर बोले “अच्छा जे पुल चालू करने की साहब से बोल दो,परेशान हो रहे सब,पता नहीं कब मंत्री आएगा”

“पुल के लिए साहब से का पूंछने, पुल फे जोन डूंड धरो है बाहे बगल खों सरका दो और बनालो गैल”

औऱ उदघाटन नहीं होगा फिर ,नेताजी ने बोला

“मंत्री आएंगे तो फिर बन्द करके उद्घाटन करा देंगे”

“साहब ने देख लिया तो?” नेताजी ने फिर पूछा

तुम्हारे गांव का पटवारी तो महीना में एक बार आता है और साहब कहाँ से आएंगे,”

इतने में चाय आ चुकी थी, नेता जी ने चाय पी और छाता उठाकर किसी को फोन कर कहा,” 8,10 लड़कों को लेकर पुल पर आजाओ”

#कचहरीनामा

#बेरंग लिफाफे