अयोग्यता की आकांक्षा

****अयोग्यता की आकांक्षा****
लोक प्रशासन में पढ़ते हैं कि सभी सरकारी कार्यालयों पर पार्किंसन सिद्धांत लागू होता है, जिसका अर्थ यह है कि प्रत्येक अधिकारी व कर्मचारी अपना अधीनस्थ चाहता है व काम टालकर नीचे की ओर भेजता है और इस प्रकार नीचे का कर्मचारी कार्याधिक्य बताकर और नीचे कर्मचारी की नियुक्ति करना चाहता है व उससे काम लेकर खुद आराम करना चाहता है, इस प्रकार प्रत्येक कार्यालय में कर्मचारी की बृद्धि होती जाती है व एक ऐसा व्यक्ति मिल जाता है जिसे कम वेतन व सबसे ज्यादा जिम्मेदारी मिलती है । कोई भी गलती होने के बाद उस साबसे नीचे वाले व्यक्ति पर ही कार्यवाही होती है,क्योंकि बार फ़ाइल या नोटशीट को शुरू करने वाला वही है ।
एक और सिद्धांत है जो यह कहता है कि हर व्यक्ति तब तक तरक्की करता है जब तक कि वह ऐसे पद पर न पहुंच जाए जिसके लिये वह अयोग्य हो, उदाहरण के लिए कोई क्लर्क कुछ वर्ष वाद उसी विभाग में छोटा अधिकारी बन जाता है,वह योग्य लिपिक था लेकिन अधिकांश मामलों में अधिकारी के रूप में उसमें नियंत्रण क्षमता न होने के कारण वह अयोग्य सिद्ध होता है,वह अधिकारी बनने के बाद भी अपना कार्य छोड़कर बार बार क्लर्क का कार्य करता रहता है ,अब आगे उसकी पदोन्नति नहीं होगी लेकिन उसे बापस क्लर्क भी नहीं बनाया जाएगा तो अब वह ऐसा अधिकारी होगा जो उस पद के लिए योग्य नहीं है । यदि वह योग्य होगा तो आगे पदोन्नति पाकर ऐसे पद पर पहुंच जाएगा जब तक उस पद के लिए अयोग्य न हो या जब तक वह अपनी अयोग्यता का स्तर न पा ले ।
ऐसे ही आप एक शिक्षक को देख सकते हैं एक अच्छा शिक्षक पदोन्नत होकर अयोग्य प्रिंसिपल बनने तक पदोन्नति चाहता है, जब अपने अयोग्यता के स्तर को पा लेता है तो रुक जाता है ।
अर्थात एक व्यक्ति तब तक उन्नति करता है जब तक अपने अयोग्यता के स्तर पर न पहुंच जाए, क्योंकि देर सबेर वह इसे प्राप्त कर लेता है, इस हिसाब से कोई भी कार्यालय अपनी क्षमता से 25 या 50% से अधिक काम नहीं कर रहा होता ।
यह प्रक्रिया समाज मे भी दिखाई देती है, और अयोग्यता का स्तर प्राप्त करने के लिए हर व्यक्ति प्रयास करता है , जैसे यदि कोई कर्मचारी ऐसी जगह होगा जिसके लिए वह योग्य है और वहाँ से आगे उन्नति नहीं हो सकती तो संस्था छोड़ कर दूसरी जगह पहुंच जाता है, एक सफल व्यवसायी असफल राजनेता बनना चाहता है, एक सफल इंजीनियर असफल ठेकेदार बनना चाहता है, एक सफल प्रकाशक असफल लेखक बनना चाहता है, एक सफल लेखक असफल प्रकाशक बनना चाहता है, एक सफल ड्राइवर असफल कंडक्टर बनना चाहता है, एक सफल डॉक्टर असफल मैनेजर बनना चाहता है, एक सफल पाठक असफल समीक्षक बनना चाहता है, एक सफल समीक्षक असफल लेखक बनना चाहता है और यह वृत्ति समूचे समाज मे दिखती है ।

मनीष भार्गव